चोरी की थीसिस से Ph.D और साँठगाँठ से कुलपति: जोड़तोड़ के उस्ताद विनय पाठक का UP से लेकर दिल्ली तक नेटवर्क

उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय (CSJMU, Kanpur, UP) के कुलपति विनय पाठक (Vinay Pathak) के खिलाफ लखनऊ में FIR दर्ज हुई है। पाठक पर एक कंपनी के डायरेक्ट को बंधक बनाकर रंगदारी वसूलने का आरोप है। इतना ही नहीं, जाँच में यह भी सामने आया है कि अपने नजदीकी अजय मिश्रा के साथ मिलकर वित्तीय अनियमितता और नियुक्तियों में हेरफेर का काम करते हैं। ये कुल 8 विश्वविद्यालयों में कुलपति रहे। इस दौरान पाठक पर की तरह के आरोप लगे, लेकिन राजनीतिक संरक्षण के कारण उनका कुछ नहीं हो पाया। इन पर चोरी की थीसिस जमा कराकर पीएचडी की डिग्री लेने का भी आरोप है।

विनय पाठक और भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी (साभार: आजतक)

कहा जाता है कि शिक्षण कैरियर की शुरुआत के साथ ही विनय पाठक नेताओं के साथ मिलकर कुर्सी हथियाने का षडयंत्र रचना सीखने लगे थे। पाठक पहले कानपुर के एचबीटीआई कॉलेज में लेक्चरर बनाए गए। वहाँ वे Dean तक बनए गए। इसके बाद वे कुलपति बनने के लिए बहुत सोझ-समझकर चाल चली और अपने राजनीतिक आकाओं के सहयोग से इसमें वे सफल भी रहे।


विनय पाठक ने सबसे पहले ओपन यूनिवर्सिटी में कुलपति बनने के लिए लॉबिंग की। ओपन यूनिवर्सिटी में छात्रों के पढ़ने-पढ़ाने का दबाव नहीं सिर्फ परीक्षा कराना और कॉपी का मूल्यांकन कराना ही मुख्य काम रहता है। इसके अलावा, लोगों का इस पर फोकस भी नहीं रहता है। इसलिए ये एक सरल रास्ता बन जाता है। इस सरल रास्ते और जुगाड़ के बल पर वह सबसे पहले उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी हल्द्वानी के कुलपति बन गए।


कुलपति का पद मिलते ही उन्होंने राजनीतिक गलियारे में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी और हर पार्टी के नेताओं, अपने समाज के नेताओं का संरक्षण प्राप्त करने लगे। उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी, तब पाठक जोड़-तोड़ के जरिए 4 अगस्त 2015 को प्रदेश के सबसे बड़े टेक्निकल यूनिवर्सिटी एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (AKTU) के कुलपति बन गए। 


साल 2017 में जब राज्य में भाजपा की सरकार आई तो वे यहाँ भी चक्कर लगाने शुरू कर दिए। जातिवादी राजनीति राजनीति का असर ये रहा कि नियम और कायदों को ताक पर रखकर पाठक AKTU में दूसरी कार्यकाल के लिए भी कुलपति बन गए। नियम कहता है कि किसी भी विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति सिर्फ 3 वर्ष के लिए होती है। पाठक की पहला कार्यकाल 3 अगस्त 2018 तक ही था, लेकिन सत्ता बदलने के बाद वे अपना दूसरा कार्यकाल 1 अगस्त 2021 तक पूरा किए।


कहा जाता है कि विनय पाठक को AKTU का कुलपति बनाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राजी नहीं थे। वे मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी (गोरखपुर) के कुलपति ओमकार यादव को AKTU का कुलपति बनाना चाहते थे। हालाँकि, ब्राह्मणों को सपा की मोड़ने के नाम पर अखिलेश यादव को लुभाया गया। इसमें राजनेता से लेकर नौकरशाहों तक का सहयोग विनय को मिला। नौकरशाही और बड़े पदों पर स्वजातीय का रहना पाठक के काम आ गया। इसके बाद पाठक को AKTU में नियुक्त कर दिया गया।


वर्तमान में कानपुर की छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति बनने से पहले वे 7 विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे। इस दौरान वे प्रदेश से लेकर दिल्ली तक की राजनीति और नौकरशाही में अपनी मजबूत पैठ बना लिया। ये ऐसा पैठ है कि घोटाले के इतने मामले सामने आने के बाद भी पाठक से आजतक पूछताछ नहीं हुई है, गिरफ्तारी तो दूर की बात है। इस पूरे खेल में सिर्फ उनके करीबी और साझेदार बताए जा रहे अजय मिश्रा (Ajay Mishra) और अजय जैन (Ajay Jain) की गिरफ्तारी हुई है।

वहीं, यूपी के 6 पूर्व विधायकों ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर सीधे शब्दों में कहा है कि पाठक के ऊपर राजनीतिक हाथ है, इसलिए उनकी आज तक गिरफ्तारी नहीं हुई है। पूर्व विधायकों ने पाठक द्वारा जमा की गई अरबों की अवैध संपत्ति पर बुलडोजर चलाने और मामले की जाँच ED, CBI और आयकर विभाग से कराने की माँग की है। बता दें कि STF की जाँच के दौरान प्रश्न-पत्रों से जुड़ा मामला भी सामने आ रहा है। अगर मामले की निष्पक्ष जाँच की जाए तो प्रदेश में सरकारी नौकरियों के प्रश्न पत्र लीक होने और सॉल्वर गैंग का पर्दाफाश हो सकता है।

कानपुर में 1969 में जन्मे पाठक लगभग 29 सालों से विभिन्न शिक्षण संस्थानों में काम कर रहे हैं। इसमें 16 साल लेक्चरर, प्रोफेसर और डीन रहे, जबकि 13 साल से लगातार कुलपति हैं। सबसे पहले पाठक उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी में 25 नवंबर 2009 से 24 नवंबर 2012 तक कुलपति रहे। इसके बाद 1 फरवरी 2013 से 3 अगस्त 2015 तक को वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी कोटा के कुलपति रहे। 


लखनऊ के AKTU का कुलपति रहने के दौरान पाठक के पास दूसरी यूनिवर्सिटी का भी अतिरिक्त प्रभार रहा। वे 22 दिसंबर 2020 से 10 अप्रैल 2021 तक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा यूनिवर्सिटी लखनऊ के प्रभारी कुलपति रहे। वहीं, जनवरी 2022 से सितंबर 2022 तक आगरा के डॉक्टर भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रभारी कुलपति रहे। 

पाठक आठ विश्वविद्यालय में 13 वर्ष से कुलपति हैं और यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इस दौरान उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में तीन मुख्यमंत्री और तीन राज्यपाल बदले गए, लेकिन पाठक अपनी तगड़ी सेटिंग के कारण पद पर बने हुए हैं। पाठक 40 वर्ष की उम्र में पहली बार वाइस चांसलर बन गए थे और अभी उनकी उम्र 53 साल है। 


पाठक के पास एक समय में तीन-तीन यूनिवर्सिटी का प्रभार रहा है। AKTU, लखनऊ के कुलपति रहने के साथ ही वे हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय कानपुर तथा ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ के कार्यवाहक कुलपति रहे। कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के नियमित कुलपति नियुक्त होने बाद प्रोफेसर विनय पाठक के पास डाक्टर भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के कुलपति का भी अतिरिक्त कार्यभार रहा।

और तो और, विनय पाठक के पास सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के ही नहीं, राजस्थान में कुलपति रहे और वहाँ भी उनके पास दो विश्वविद्यालय का प्रभार रहा। पाठक जब राजस्थान के वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति थे तो उनके पास राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा का भी अतिरिक्त प्रभार रहा। पाठक के पास 13 वर्ष वीसी रहने के साथ 16 वर्ष लेक्चरर रहने का भी अनुभव है।

चोरी की थीसिस जमा करके Ph.D लिया विनय पाठक ने

इतना ही नहीं, विनय पाठक पर थीसिस चोरी कर पी.एचडी. पूरा करने का भी आरोप है। साल 2018 में एक आरटीआई के जवाब में MHRD ने बताया था कि जिन तीन कुलपतियों पर थीसिस चोरी का आरोप है, उनमें पांडिचेरी यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति चंद्र कृष्णमूर्ति, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के रीडर अनिल कुमार उपाध्याय और AKTU के तत्कालीन कुलपति विनय पाठक हैं।

इन पर एक्शन को लेकर RTI में कहा गया था कि कृष्णमूर्ति को जुलाई 2016 में ही पद से हटा दिया गया था, वहीं अनिल उपाध्याय के मामले में शिकायत को काशी विद्यापीठ के तत्कालीन कुलपति को भेजा गया था। इसका कुलपति ने जवाब भेजा और उसे जवाब को शिकायतकर्ता को भेजा गया।

विनय पाठक के मामले में MHRD ने RTI के जवाब में कहा था कि शिकायत को कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी को भेज दिया गया है। जवाब की प्रतीक्षा है। जाहिर है कि विनय पाठक ने अपना जवाब नहीं भेजा था। इसके बावजूद उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई और वे लगातार कुलपति बनते आए।

तक्षकपोस्ट के अनुसार, कुलपति बनने के लिए पीएचडी डिग्री के साथ 10 साल अनुभव होना चाहिए, लेकिन साल 2004 में चोरी की थीसिस से पीएचडी पूरा करने वाले विनय पाठक साल 2009 में कुलपति बन गए थे। यह भी भ्रष्टाचार का एक अनुपम उदाहरण है।

ED मामले की कर सकती है जाँच

वहीं, अब इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कलेक्टरेट से जानकारी माँगी है। माना जा रहा है कि विनय पाठक और उनके गिरफ्तार सहयोगी अजय मिश्रा और अजय जैन द्वारा बटोरी गई अकूत संपत्ति की जांच ED कर सकती है। फिलहाल इस मामले की जाँच यूपी सरकार द्वारा गठित STF कर रही है। वहीं, कुल पूर्व विधायकों ने मामले में सीबीआई जाँच की माँग की है।
  
रंगदारी माँगने और बंधक बनाने का आरोप

बता दें कि पाठक पर अजय मिश्रा के साथ मिलकर बिल पास करने के बदले रंगदारी माँगने और नहीं देने पर बंधक बनाने का आरोप लगा है। यूनिवर्सिटी में परीक्षा कराने वाली निजी कंपनी डिजीटेक्स टेक्नोलॉजी इंडिया के मालिक डेविड मारियो ने 29 अक्टूबर 2022 को लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में एक मामला दर्ज कराया था। डेविड का आरोप लगाया है कि उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय के वीसी रहे विनय पाठक कार्यकाल के दौरान बिलों को पास करने के लिए पाठक और मिश्रा ने उनसे रंगदारी माँगी थी। इतना ही नहीं, उन्हें बंधक भी बनाया गया था।

धमकी के बाद अपने बिलों को पास कराने के लिए डेविड ने पाठक को 1 करोड़ 41 लाख रुपए की रिश्वत दी थी। डेविड की कंपनी आगरा यूनिवर्सिटी के साथ 2014-15 से 2020 तक काम कर रही थी। डेविड ने कहा कि अपने बकाए के भुगतान के लिए जब उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय में पाठक से उनके आवास पर मुलाकात की तो उनसे कहा गया कि उन्हें 15 प्रतिशत कमीशन देना होगा। 

डेविड मारियो डेनिस ने पाठक पर आरोप लगाया है कि रुपये न देने पर विश्वविद्यालय में 2022-23 का कार्य नहीं देंगे, इसके चलते अजय मिश्रा की एक कंपनी को इसका कार्य दे दिया है। इससे इस मामले की जांच भी एसटीएफ करेगी। एसटीएफ को आशंका है कि कमीशन न देने के कारण कहीं ही नई एजेंसी को परीक्षा संबंधी कार्य दिया हो। 

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय से करीब 408 कॉलेजों को अलीगढ़ की राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से जोड़ा गया है। यहां के करीब 100 कॉलेजों को संबद्धता दी गई। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलसचिव महेश कुमार ने भी इन कॉलेजों का डेटा आगरा विश्वविद्यालय से मांगा, लेकिन अभी तक डेटा नहीं मिला है। इससे इनमें भी गड़बड़ी की आशंका पर एसटीएफ जांच करेगी। एसटीएफ ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने इनके 10 महीने के कार्यकाल में कॉलेजों में संबद्धता, योजनाएं, विभागीय कार्य की सूची बनाकर मांगी है। 

पाठक के कुलपति प्रभारी के दौरान ही विश्वविद्यालय के एमबीबीएस और बीएएमएस की कॉपियां बदलने का गैंग पकड़ा था। इसमें विश्वविद्यालय का कर्मचारी, छात्र नेता, डॉक्टर और शिक्षा माफिया का गैंग था। इस मामले की एसटीएफ पहले से ही जांच कर रही है।

Post a Comment

Previous Post Next Post