सनातन धर्म की साधना पद्धतियों में मुद्रा का विधान है। मुद्रा का कर्मकांड से प्रत्यक्ष संबंध ना होकर इसका चेतना से सीधा संबंध है। अपने तात्विक स्वरुप वैसा नहीं है, जैसा बाह्य रूप में दिखायी देता है। मालिनी विजयोत्तर तन्त्र में लिखा भी है कि मुद्रा शिवशक्ति है। इसके अनुग्रह या शक्ति से साधक मन्त्र सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
मुद्राओं का तत्काल और सूक्ष्म प्रभाव शरीर की आंतरिक ग्रन्थियों पर पड़ता है। इन मुद्राओं के माध्यम से शरीर के अवयवों तथा उनकी क्रियाओं को प्रभावित, नियन्त्रित किया जा सकता है। एकदम विलक्षण और चमत्कारी लाभ पहुंचाने वाली इन मुद्राओं का अलग-अलग क्रिया विधि है। एक साधक के लिए इनको जानना अति आवश्यक है।
इन मुद्राओं को सिद्ध करने वाला व्यक्ति आनंद की चरम अनुभूति प्राप्त करने लगता है। इसके साथ ही समय और काल के चक्र से बाहर निकलकर इनका भोक्ता होने की अपेक्षा इनका साक्षी हो जाता है। मनमामिक कार्य करना, हवा में उड़ना, पानी पर चलना आदि इन सिद्ध पुरुषों के सामान्य बात हो जाती है। इन मुद्राओं को सिद्ध करने के पश्चात व्यक्ति भूत और भविष्य को देखने लगता है। वह परमात्मा से साक्षात्कार करने लगता है। हालांकि, इन मुद्राओं को गुरु के मार्ग-दर्शन में सिद्ध करना चाहिए, अन्यथा इसके विपरीत परिणाम भी सामने आते हैं।