विकट जातिवादी हैं VC कल्पलता पांडेय: अकेले खा गईं EWS की सीटें, 16 में से 13 पद पर स्वजातीय को बैठाया

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बलिया (Ballia) स्थित जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय (JNCU) की कुलपति प्रोफेसर कल्पलता पांडेय (Kalplata Pandey) आजकल चर्चा में हैं। वजह है असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर सिर्फ स्वजातीय लोगों की भर्ती। शिकायत के आधार पर कुलाधिपति (राज्यपाल) के उपसचिव हेमंत कुमार चौधरी ने कुलपति को पत्र लिखकर मामले में जाँच कराने और नियमानुसार कार्यवाही का निर्देश दिया है।

कल्पलता पांडेय

कल्पलता पर आरोप है कि अगस्त-सितंबर 2022 में सेवानिृत होने से पहले विश्वविद्यालय के विभिन्न पदों पर सिर्फ अपनी जाति के लोगों की भर्ती की हैं। दरअसल, विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के 16 पदों पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए दिसंबर 2021 में विज्ञापन जारी किया गया था। जिन 16 पदों के लिए नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाली गई थी, इनमें अनारक्षित और EWS वर्ग के पद शामिल हैं। 

वहीं, कुछ अनुसूचित जाति/जानजाति के पदों को यह कहते हुए खाली छोड़ दिया गया कि 'उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिला' (NFC)। एनएफसी अपने आप में एक अलग घोटाला है। जब आरक्षित वर्ग में कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिलता है तो वह पद खाली रह जाता है और अगली भर्ती में उसे सामान्य में दिखाकर अपने मनपसंद उम्मीदवारों की भर्ती कर ली जाती है। जैसा कि इलाहाबाद के GB यूनिवर्सिटी में दिसंबर 2021 की भर्ती मे देखने को मिला था। इसकी चर्चा नीचे की गई है।

तो बलिया के JNCU में नियुक्ति की पहली सूची 14 अगस्त 2022 और दूसरी सूची 29 अगस्त 2022 को जारी की गई। सूची में देखने पर पता चला कि 16 पदों पर 13 पर ब्राह्मण जाति और 3 पर भूमिहार जाति के लोगों की नियुक्ति की गई है। इनमें सभी EWS सीटों पर सिर्फ ब्राह्मणों को ही लिया गया है।

अंग्रेजी, समाजशास्त्र, वाणिज्य और गृह विज्ञान के कुल 8 पदों के लिए 6 ब्राह्मण और 2 भूमिहार का चयन हुआ है। वहीं हिंदी, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के 8 पदों में से 7 पर ब्राह्मण और 1 पर भूमिहार का चयन किया गया है।

इन सबमें सबसे बड़ी बात ये है कि कुल 16 पदों में 3 EWS वर्ग के भी पद थे। इन तीनों पदों पर कल्पलता पांडेय ने ब्राह्मणों को बैठा दिया। आरोप है कि इसके पहले भी कल्पलता पांडेय ने शिक्षा निदेशक, एसोसिएट प्रोफेसर सहित अनेक शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक पदों पर नियुक्तियाँ की हैं, उन सब पदों पर सिर्फ ब्राह्मणों की भर्ती की है।

इसे 'टैलेंट कहें या जातिवाद' ये तो कल्पलता पांडेय ही बता पाएँगी, लेकिन यह भी तथ्य है कि किसी भर्ती में 81 प्रतिशत से अधिक एक ही जाति की नियुक्ति सवाल खड़े करते हैं। कुलपति बलिया की ही रहने वाली हैं और इसी महीने सेवानिवृत होने वाली हैं। रिटायर होने से पहले उन्होंने जल्दी-जल्दी में भर्ती प्रक्रिया को पूरा किया।

इस नियुक्ति के संबंध में विश्वविद्यालय के कुल सचिव एसएल पाल से जब सवाल किया गया तो उन्होंने इसकी जानकारी होने से ही मना कर दिया। उन्होंने इसे टालकर गेंद को उच्चाधिकारियों के पाले में डाल दिया। जिन अभ्यर्थियों का चयन हुआ है, उनके नाम और विभाग इस प्रकार हैं-

हिंदी

  1. अभिषेक मिश्र S/O कमलेश मिश्र
  2. प्रमोद शंकर पांडेय S/O प्रेम शंकर पांडेय (EWS)
    राजनीति विज्ञान
  3. अनुराधा राय D/O रमेश चंद्र राय
  4. रजनी चौबे D/O कुंज बिहारी चौबे
    समाजशास्त्र
  5. अभिषेक त्रिपाठी S/O रवि प्रकाश त्रिपाठी
  6. कुमारी स्मिता D/O भरत भूषण त्रिपाठी
    अर्थशास्त्र
  7. गुंजन कुमार S/O अनिल पांडेय
  8. शशिभूषण S/O रंगनाथ पांडेय
    अंग्रेजी
  9. सरिता पांडेय D/O मुरलीधर दुबे
  10. नीरज कुमार सिंह S/O हरिशंकर सिंह ( भूमिहार ब्राह्मण, मिर्जापुर)
    वाणिज्य
  11. नीलमणि त्रिपाठी S/O रमाकांत त्रिपाठी
  12. विजय शंकर पंडित S/O केपी पांडेय
    समाजकार्य
    13.संजीव कुमार S/O महेंद्र सिंह (भूमिहार ब्राह्मण)
  13. पवन कुमार त्रिपाठी S/O शिव कुमार त्रिपाठी (EWS)
    गृह विज्ञान
  14. सौम्या तिवारी S/O राम कुमार तिवारी
  15. तृप्ति तिवारी W/O राम नरेश तिवारी (EWS)

इस संबंध में विेश्वविद्यालय की भर्ती प्रक्रिया में शामिल एक उम्मीदवार ने उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर भर्ती प्रक्रिया से संबंधित निम्नलिखित खामियों को उठाया है: 

• विश्वविद्यालय ने आवेदकों के प्रश्न पत्र को ना ही विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड किए या ना ही उन्हें दिया। इस तरह आपत्ति उठाने के उनके अधिकार को जब्त करके प्रत्येक परीक्षार्थी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया।

• कुछ ऐसे आवेदक थे जो पहले से ही विश्वविद्यालय में गेस्ट फैकल्टी के रूप में कार्यरत थे। वे पहले से ही कुलपति कल्पलता पांडेय के अत्याचारी स्वभाव से अवगत हैं। हटाए जाने के डर से उनमें से कई लोगों ने इस व्यवस्था के खिलाफ आपत्ति नहीं उठाई। हालाँकि, दबाव में कुछ लोगों ने मेल लिखकर प्रश्न पत्र अपलोड करने के बारे में पूछा तो विश्वविद्यालय ने न केवल उनकी माँग को खारिज कर दिया, बल्कि एक बयान जारी कर कहा कि विश्वविद्यालय को कोई आपत्ति नहीं मिली और भर्ती की प्रक्रिया को पूरा कर लिया गया है।

• विश्वविद्यालय ने परीक्षा की तारीख तक किसी भी विभाग में आवेदकों के किसी भी कट ऑफ स्कोर/मेरिट सूची/रैंक को अपलोड नहीं किया और ना ही दिया। दूसरी ओर श्री राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय फैजाबाद और लखनऊ विश्वविद्यालय जैसे अन्य विश्वविद्यालयों में नियुक्तियाँ की जा रही हैं, जहाँ सब कुछ स्पष्ट है। 

• विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार यह पाया गया है कि विश्वविद्यालय सहायक प्रोफेसर के विभिन्न पदों को भरने के लिए उम्मीदवारों का साक्षात्कार गुप्त तरीके से किया गया। विश्वविद्यालय ने साक्षात्कार की तिथि, बुलाए गए उम्मीदवारों की संख्या और उनके पंजीकरण या रोल नंबर, उनके कुल स्कोर के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

•  जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया की उपकुलपति स्वयं बलिया की स्थानीय निवासी हैं। इसलिए उनके इरादे बहुत स्पष्ट हैं कि वे अपने ज्ञात उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए अपनी शक्ति का उपयोग कर रही हैं। उनका जाति विशेष (ब्राह्मणों) के प्रति खास झुकाव है। अब तक की गई सभी नियुक्तियाँ ब्राह्मणों की हैं, चाहे वह शैक्षणिक निदेशक हों, एसोसिएट प्रोफेसर हों या विश्वविद्यालय परिसर में अन्य पद हों।

•  कुलपति जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाली हैं और अगस्त 2022 में उनकी शक्ति जब्त हो जाएँगी। ऐसे में सभी नियुक्तियों को उन्होंने तेजी के साथ मानमाने ढंग और पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर कीं।

• यूजीसी के परिपत्र संख्या एफ. 1-1/2018 (सीपीपी-आई/पीयू) दिनांक 17 जुलाई 2019 के अनुसार, सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को अपने संस्थानों के बारे में प्रासंगिक जानकारी अपनी वेबसाइट पर सहायक दस्तावेजों के साथ डालने के लिए कहा गया था।  यूपी के राज्यपाल के आदेश के अनुसार ई-3019/32/जीएस/2020 सभी विश्वविद्यालयों को भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कहा गया है। इसके बाद भी यह विश्वविद्यालय ऐसा नहीं कर रहा है।

बता दें कि दिसंबर 2021 में इसी तरह के भर्ती घोटाले का एक मामला यूपी के इलाहाबाद स्थित झूँसी के गोविंदवल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट (GB Pant Social Science Institute) में आया था। इसके निदेशक बद्री नारायण तिवारी (Badri Narayan Tiwari) ने असिस्टेंट प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के कई पदों पर भर्ती निकाली और अधिकांश सीटों पर उन्होंने ब्राह्मणों की भर्ती की थी। 

इतना ही नहीं, बद्री नारायण तिवारी के देखरेख में संस्थान ने OBC के लिए आरक्षित पदों को ये कहकर खाली छोड़ दिया गया कि ‘None Found Suitable’ यानी ‘कोई लायक उम्मीदवार’ मिला ही नहीं। NFS के बहाने ओबीसी की हक मार लिया था।

गौरतलब कि बद्री नारायण तिवारी एक जमाने में घनघोर वामपंथी थे और भाजपा के कट्टर आलोचक। जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो वे कट्टर हिंदूवादी बन गए और सरकार ने उन्हें संस्थान का निदेशक बनाकर सम्मानित भी किया गया। तिवारी अखबारों में भी खूब लेख लिखते हैं और अक्सर जातीय विवेचना पेश करते हैं।

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