मंदिर के पुजारियों का छत्रपति शाहूजी के परिवार संग भेदभाव, वैदिक पूजा से किया इनकार

मराठा के नाम से देश भर में पहचाने जाने वाले महाराष्ट्र के क्षत्रिय शिवाजी महाराज के पौत्र शाहूजी महाराज की वारिस के साथ मंदिर के ब्राह्मण पुजारियों ने 100 बाद भी भेदभाव जारी रखा है। इसकी जानकारी छत्रपति के परिवार की संयोगिता राजे छत्रपति ने खुद दी है। उन्होंने कहा कि मंदिर के पुजारियों ने उन्हें वैदिक रीति से पूजा कराने से मना कर दिया।



संयोगिता राजे बताया कि वह रामनवमी यानी 30 मार्च 2023 को नासिक कलाराम मंदिर गई थीं। इस समय उन्होंने मंदिर में पूजा की। पूजा के दौरान मंदिर के ब्राह्मण पुजारी ने पारंपरिक तरीके यानी पुराणों में दिए गए मंत्रों से शुरू की तो संयोगिता राजे छत्रपति ने आपत्ति जताई। उन्होंने इसे वैदिक रीति से कराने के लिए कहा।

इसके बाद पुजारी ने संयोगिता राजे छत्रपति से कहा, "आपको वेदोक्त मंत्र पढ़ने का कोई अधिकार नहीं है।" उन्होंने आगे यह भी आरोप लगाया कि जब वह ऋग्वेद के एक श्लोक 'महामृत्युंजय मंत्र' का पाठ कर रही थी, तब पुजारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की।


संयोगिता राजे छत्रपति ने अपने सोशल मीडिया इंस्टाग्राम पर घटना का जिक्र करते हुए लिखा, "नासिक के कालाराम मंदिर के तथाकथित पुजारियों ने मेरी पूजा के लिए पौराणिक मंत्रों का जाप करने की कोशिश की। मैंने इसका कड़ा विरोध किया, क्योंकि मेरे पास कोल्हापुर के छत्रपति की विरासत है। उन्होंने (पुजारियों ने) मुझे कई कारण बताते हुए समझाने की कोशिश की कि मुझे वैदिक मन्त्रों के जाप का अधिकार नहीं है।"

संयोगिता राजे ने अपने इंस्टाग्राम पर आगे लिखा, "मैंने उनसे (पुजारियों से) कहा कि मुझे भगवान से मिलने और उनकी स्तुति करने के लिए मध्यस्थ के रूप में आपकी जरूरत नहीं है।" बता दें कि संयोगिता राजे भोसले उर्फ संयोगिता राजे छत्रपति पूर्व राज्यसभा सदस्य संभाजी राजे भोसले की पत्नी हैं। संभाजी राजे भोसले छत्रपति शाहूजी महाराज के प्रत्यक्ष वंशज हैं।

यह घटना छत्रपति शाहूजी महाराज के जीवन में प्रसिद्ध में घटित हुई 'वेदोक्त विवाद' की वापसी है। जब छत्रपति शाहूजी महाराज ने देखा था कि उनके अनुष्ठानों में शाही पुजारी वेदों में दिए गए मंत्रों के बजाय पुराणों में दिए गए मंत्रों का पाठ कर रहे हैं तो उन्होंने इस पर आपत्ति जताई थी। 

हालाँकि, पुजारियों ने छत्रपति को क्षत्रिय के बजाय शूद्र कहते हुए उन्हें वैदिक अनुष्ठान कराने से मना कर दिया और कहा था कि वैदिक अनुष्ठानों का उन्हें अधिकार नहीं है। इसके बाद उन्होंने मंदिरों से पुजारियों को हटाकर क्षत्रिय पुजारियों की नियुक्ति शुरू की थी। इन पुजारियों को उन्होंने 'क्षात्र जगद्गुरु' (क्षत्रियों के विश्वगुरु) की उपाधि दी।

शाहूजी महाराजा के वारिस संभाजी भोसले और उनकी पत्नी संयोगिता राजे छत्रपित

बता दें कि क्षत्रपति शिवाजी महाराज खुद को मेवाड़ के गहलोत/सिसोदिया कुल से जुड़ा हुआ बताते थे। इसके कई लिखित प्रमाण भी मौजूद हैं। हालाँकि, ब्राह्मण उन्हें शुद्र कहकर प्रचारित करते रहे। बाद में इन्हीं ब्राह्मणों ने उनके यहाँ मंत्री के रूप में नौकरी की और सत्ता पर कब्जा कर लिया। 

बता दें कि पुराणों के काल में लिखे गए मनुस्मृति जैसे संस्कृत ग्रंथों में केवल ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों को ही वैदिक मंत्रों और कर्मकांडों का अधिकार है। ब्राह्मण पुजारी शूद्रों को पौराणिक अनुष्ठान कराते हैं। पुराणों की रचना आमतौर पर 10वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी के बीच मानी जाती है।

इतना ही नहीं, सन 1930 में डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने नासिक के इसी कालाराम मंदिर में दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए सत्याग्रह किया था। यह सत्याग्रह 1934 तक चला था। बाद में डॉक्टर अंबेडकर ने इस सत्याग्रह को खत्म कर दिया, क्योंकि ब्राह्मणों ने इस मुद्दे पर झुकने से इनकार कर दिया था।

यहाँ तक कि स्वतंत्रता सेनानी कहलाने वाले बाल गंगाधर तिलक ने भी राजा के पुजारी का पक्ष लिया था। तिलक ने वैदिक संस्कारों पर जोर देने के लिए कोल्हापुर के राजा की कड़ी आलोचना की। बताते चलें कि छत्रपति शाहूजी महाराज ने कई सामाजिक सुधार करते हुए दलितों को अधिकार दिए थे।


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